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Monday, 23 August 2021

अब तालिबान के कंट्रोल में अफगानिस्तान की मीडिया, टीवी चैनल पर संगीत की जगह जिहाद की गूंज

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काबुल
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ ही देश की मीडिया का कलेवर पूरी तरह बदल गया है। सभी टीवी चैनल ने अब संगीत और इससे जुड़े मनोरंजक कार्यक्रम दिखाने बंद कर दिए हैं। टीवी पर संगीत की जगह अब धार्मिक कार्यक्रमों की गूंज है, जिसमें जिहादी बातें की जा रही हैं। इसके अलावा तालिबान नेताओं की तारीफ के पुल बांधे जा रहे हैं। अफगान मीडिया ने हालात को भांपते हुए खुद को नए कायदे के अनुरूप ढालने में देरी नहीं की। यही वजह है कि छोटे पर्दे पर मजहब से जुड़ी खबरें प्रसारित की जा रही हैं।

दरअसल तालिबान ने सबसे पहले 2 अगस्त, 2021 को हेलमंड स्थित राष्ट्रीय रेडियो स्टेशन पर कब्जा किया था। इसके बाद तेजी से देश के अन्य टीवी चैनलों को भी अपने नियंत्रण में ले लिया और प्रसारण बंद कर दिए। इसके मद्देनजर चैनलों ने तालिबान की सोच के अनुरूप अपने प्रोग्राम बदल दिए। इसका असर फिल्म उद्योग समेत आम आदमी पर भी देखने को मिल रहा है। लोगों ने सोशल मीडिया अकाउंट से अपने-अपने फोटो डिलीट करने शुरू कर दिए हैं, ताकि उन्हें किसी तरह की समस्या का सामना नहीं करना पड़े।

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इसके अतिरिक्त महिला मीडिया कर्मियों और एंकर ने अब अनिवार्य रूप से हिजाब पहनना शुरू कर दिया है। बताते चलें कि वर्ष 2001 में तालिबान के सत्ता से बेदखल होने के बाद दर्जनों टीवी चैनल, रेडियो स्टेशन और अखबार फल-फूल रहे थे, लेकिन अब इनमें से कई बंद हो चुके हैं।

टीवी कार्यक्रमों में आए पांच प्रमुख बदलाव:

1-अधिक से अधिक तालिबान नेताओं का इंटरव्यू
2- गती-संगीत और इससे जुड़े शो बंद किए
3-छोटे पर्दे पर सख्त शरीयत कानून के फायदे गिनाए जा रहे
4- हेलमंड स्थित नेशनल रेडियो स्टेशन पर भी तालिबान का बखान
5- महिला एंकर अनिवार्य रूप से हिजाब में दिख रहीं

मीडियाकर्मियों की मुश्किलें बढ़ी
अफगानिस्तान में मीडियाकर्मियों को गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कई चैनल बंद होने से बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी अपनी नौकरी गंवा चुके हैं और जिनकी नौकरी बची है, उन्हें तरह-तरह के जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय पत्रकार संघ के उपमहासचिव जर्मी डीयर ने भी माना कि अफगानिस्तान में पत्रकारों के लिए यह एक कठिन समय है।

तालिबान मीडिया का इस्तेमाल करने में माहिर
तालिबान मीडिया का इस्तेमाल करने में माहिर है। यही वजह है कि उसने अंतरराष्ट्रीय टीवी चैनल अल-जजीरा को विशेष अनुमति देकर एक्सक्लुसिव इंटरव्यू दिया। इसके विपरीत तालिबान ने अफगानिस्तान में शुरुआत में टीवी प्रसारण बाधित कर दिए और महिला एंकर-रिपोर्टर को मीडिया से दूर रहने को कहा। लेकिन बाद में सख्त हिदायतों के साथ टीवी प्रसारण और महिला पत्रकारों को काम करने की अनुमति दे दी।

अधर में सिनेमा का भविष्य
अफगान सिनेमा ने लंबे समय बाद वर्ष 2001 में फिर से अपनी विकास यात्रा शुरू की। तब से लेकर अब तक इसने दुनियाभर में वाहवाही बटोरी और कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते। वर्ष 2003 में बनी अफगान फिल्म ‘ओसामा' ने गोल्डन ग्लोब अवार्ड जीता था। लेकिन तालिबान की वापसी से अफगान सिनेमा जगत पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।

मीडिया रिलेशन पर गठित होगी कमेटी
तालिबान ने कहा है कि वह मीडिया रिलेशन को लेकर कमेटी गठित करने जा रहा है। तीन सदस्यीय समिति में तालिबान के एक प्रतिनिधि, मीडिया सुरक्षा संघ के उपप्रमुख और काबुल पुलिस के एक अधिकारी शामिल होंगे। यह जानकारी तालिबान के प्रवक्ता जबीहउल्लाह मुजाहिद ने दी।

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